यथा दृष्टि यथा सृष्टि किसे कहते हैं? | Yatha drishti tatha srishti

Yatha drishti tatha srishti: यदि देखा जाए तो भगवत गीता में बहुत सारे श्लोक लिखे हुए हैं | इन सभी इस लोगों का अर्थ प्रत्येक व्यक्ति अवश्य जानना चाहता है | लेकिन भागवत गीता में एक श्लोक यथा दृष्टि यथा सृष्टि है जिसे भारत देश के साथ-साथ विभिन्न देशों में भी काफी फेमस माना जाता है|

लेकिन आपने कभी यह सोचा है कि इस यथा दृष्टि यथा सृष्टि श्लोक का आखिर क्या मतलब है | दुनिया भर के लोग इस श्लोक को क्यों पसंद करते हैं | और आखिर इसका क्या मतलब है | इसी प्रकार के सवाल यदि आपके मन में लंबे समय से चल रहे हैं|

Yatha drishti tatha srishti
Yatha drishti tatha srishti

आप यहां पर अपने सभी सवालों के जवाब विस्तार पूर्वक जान सकते हैं आपके यहां पर यह पता चल जाएगा की यथा दृष्टि यथा सृष्टि श्लोक का क्या मतलब है और इस दुनिया भर में क्यों पसंद किया जाता है और इस श्लोक का क्या अर्थ है|

यथा दृष्टि यथा सृष्टि श्लोक का क्या मतलब है? | Yatha drishti tatha srishti

यथा दृष्टि यथा सृष्टि श्लोक का अर्थ होता है कि जो मानव जैसा होता है वह इस तरह पूरी दुनिया को देखा है | हालांकि इस दुनिया में तरह-तरह के लोग होते हैं जिनकी मानसिकता बहुत ही अलग होती है। कुछ ऐसे भी मानव होते हैं जो की बहुत अच्छे होते हैं और वह पूरी दुनिया का भला ही सोचते हैं|

लेकिन जो व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का भला नहीं सोचता है | वह बहुत ही बुरी श्रेणी में आते हैं क्योंकि ऐसे व्यक्ति केवल अपना ही स्वार्थ देखते हैं | वही जो लोग अच्छे होते हैं उनके दिमाग में हर समय अच्छे विचार ही उत्पन्न होते हैं वह कभी भी किसी व्यक्ति का बुरा नहीं चाहते हैं|

वही जो बुरे लोग होते हैं उनके दिमाग में केवल नेगेटिव बात ही चलती है और ऐसे व्यक्ति कभी ही किसी अन्य व्यक्ति का वाला नहीं चाहते हैं | हालांकि यदि देखा जाए तो देश और दुनिया में बहुत ही कम ऐसे व्यक्ति है जो अन्य व्यक्ति की भलाई चाहते हैं | अधिक मात्रा में इस पृथ्वी पर व्यक्ति अन्य व्यक्ति का बुरा ही चाहते हैं|

अच्छा व्यक्ति कभी भी किसी भी अन्य व्यक्ति की बुराइयां नहीं निकलता है | लेकिन वही बुरा इंसान कभी भी अच्छे इंसान की अच्छाई नहीं गिरता है | कहीं ना कहीं से बुरा इंसान किसी अन्य व्यक्ति की बुराइयां ढूंढ ही लेता है | तो इस श्लोक का यही अर्थ है कि जैसा जैसा इंसान होता है उसे वैसे ही पूरी दुनिया दिखती है|

यथा दृष्टि यथा सृष्टि से संबंधित एक पौराणिक कथा यह है?

यदि आप इस यथा दृष्टि यथा सृष्टि श्लोक को गहराई से समझाना चाहते हैं तो इस श्लोक को समझने के लिए हमने एक नीचे पौराणिक कथा शेयर किए हैं जिससे आपको यह श्लोक भारी-भारी समझ आ जाएगा|

एक बार की बात है जब गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों की परीक्षा लेना चाहते थे ताकि यह जान सके की कौन सा शिष्य कैसा है | द्रोणाचार्य ने सबसे पहले अपने शिष्य दुर्योधन की परीक्षा लेने का मन बनाया ताकि जा सके की दुर्योधन का व्यवहार किस प्रकार का है।

द्रोणाचार्य ने अपने शिष्य दुर्योधन को अपने पास बुलाया और दुर्योधन से कहा कि तुम जो और समाज में से एक अच्छा इंसान मेरे पास लेकर आना | वही दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य की बात सुनते ही वहां से निकल जाते हैं और एक अच्छे इंसान की तलाश करने लग जाते हैं|

दुर्योधन लंबा रास्ता चलकर पास के एक गांव में पहुंच जाते हैं लेकिन एक अच्छे इंसान की तलाश फिर भी जारी रहती है क्योंकि इस गांव में उन्हें कोई भी अच्छा इंसान नहीं मिलता है | दुर्योधन अच्छे इंसान की तलाश में सफल हो जाते हैं और अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास पहुंच जाते हैं|

वही द्रोणाचार्य अपने विवाह की सभी शिष्यों से यह पूछते हैं कि आखिरकार दुर्योधन को कोई अच्छा इंसान क्यों नहीं मिला है क्या इस दुनिया में कोई अच्छा इंसान नहीं है|

वही अब द्रोणाचार्य ने अपने दूसरे शिष्य युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और युधिष्ठिर से कहा की जो पास के किसी नजदीक गांव से कोई एक बुरा इंसान मेरे पास लेकर आओ | अपने गुरु की आज्ञा मानते हुए युधिष्ठिर अपने नजदीकी गांव में निकल जाते हैं ताकि एक बुरा इंसान तलाश कर सकें|

युधिष्ठिर भी लंबा रास्ता किया करके एक गांव में पहुंचते हैं लेकिन उन्हें भी कोई भी बुरा इंसान नहीं मिलता है और वह निराश होकर अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास वापस लौट जाते हैं|

वही द्रोणाचार्य अपने बाकी सभी शिष्यों से यह जानना चाहते हैं कि आखिर क्यों दुर्योधन को कोई अच्छा इंसान नहीं मिला है और वही युधिष्ठिर को बुरा इंसान क्यों नहीं मिला है और यह बात द्रोणाचार्य की सुनकर सभी शिष्य सच में पड़ जाते हैं और यह सोचते हैं कि ऐसा कभी भी कोई ही नहीं सकता हैं|

कुछ समय के बाद ही द्रोणाचार्य मुस्कुराते हैं और कहते हैं कि आप किसी व्यक्ति को जैसा देखते हैं और जैसा सोचते हैं वह व्यक्ति वैसा ही दिखाई पड़ता है अर्थात यथा दृष्टि यथा सृष्टि | दुर्योधन को इसलिए कोई भी अच्छा व्यक्ति नहीं मिला है | क्योंकि उनकी सोच अच्छी नहीं थी वही युधिष्ठिर की सोच अच्छी है इसलिए युधिष्ठिर को बुरा व्यक्ति नहीं मिला है|

मेरे विचार यथा दृष्टि यथा सृष्टि पर?

जब कभी आप किसी व्यक्ति का अच्छा नहीं सोचते हैं तो आपके मन में भी इसी प्रकार के भाव पैदा होते हैं | वही जब आप किसी व्यक्ति का कोई कार्य सही प्रकार से कर देते हैं तो आपका भाव प्रश्न हो जाता है और आपको दूसरा इंसान भी अच्छा लगने लगता है |

FAQs | यथा दृष्टि यथा सृष्टि किसे कहते हैं?

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यथा दृष्टि यथा सृष्टि को इंग्लिश में क्या कहते हैं?

how you see the world; the world will appear you in the same way.

यथा दृष्टि यथा सृष्टि को संस्कृत में क्या कहते हैं?

हम जिस नजर से इस दुनिया को देखते हैं | वैसी ही दुनिया नजर आती है|

यथा दृष्टि यथा सृष्टि भागवत गीता के अनुसार?

प्रत्येक मानव जगत को इस रूप में देखा है जैसा वह स्वयं होता है|

यथा दृष्टि यथा सृष्टि मीनिंग क्या होती है?

हम जिस नजर से इस दुनिया को देखते हैं | हमें दुनिया वैसे ही दिखाई पड़ती है |